छिंदवाड़ा : किसानों को खरीफ फसलों के लिये सामान्य सलाह, कृषि अनुसंधान केंद्र छिन्दवाड़ा द्वारा दी गई सलाह / Chhindwara News
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भारत सरकार के भारतीय मौसम विभाग पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय से संबध्द आंचलिक कृषि अनुसंधान केंद्र छिन्दवाड़ा द्वारा किसानों को खरीफ फसलों के लिये सामान्य सलाह दी गई है कि खरीफ फसलों की बोनी के समय आवश्यक आदान जैसे बीज, उर्वरक, खरपतवारनाशक, फफूंदनाशक, जैविक कल्चर आदि का क्रय कर उपलब्धता सुनिश्चित करें । वर्षा के आगमन के बाद मध्य जून से जुलाई के प्रथम सप्ताह में बोनी का उपयुक्त समय के अनुसार 100 मि.मी./4 इंच वर्षा होने के बाद ही बुआई करें, क्योंकि मानसून पूर्व वर्षा के आधार पर बोनी करने से सूखे का लंबा अंतराल रहने पर फसल को नुकसान हो सकता है। किसानों को सलाह दी गई है कि जिन स्थानों पर ग्रीष्मकालीन मूंग और उड़द की फसल पक गई है, उसे काटकर सुरक्षित स्थानों पर भंडारित करें ।Chhindwara Samachaar
इसी प्रकार किसानों को सलाह दी गई है कि भूमि के किस्मों के अनुसार संकर मक्का का चयन करें तथा शासकीय अनुसंधान केन्द्र द्वारा विकसित जे.एम.-216, जे.एम.-218, एच.क्यू.पी.एम.-वन, एच.क्यू.पी.एम.-5 व डी.एच.एम.-117 उन्नत जातियों के बीज की व्यवस्था कर बीज उपचारित करके ही बोनी करें । सोयाबीन की फसल बुआई के लिये खेतों के अंतिम जुताई के पूर्व अनुशंसित गोबर की खाद 10 टन प्रति हैक्टेयर या मुर्गी की खाद 2.5 टन प्रति हैक्टेयर की दर से खेत में डालकर अच्छी तरह मिट्टी में मिला लें और सोयाबीन की बीमारी से प्रतिरोधक क्षमता वाली किस्मों जे.एस.95-60, जे.एस.97-52, जे.एस.20-29, आर.बी.एस.2001-4, जे.एस.20-34, जे.एस.20-69, जे.एस.20-94, जे.एस.20-98, एन.आर.सी.86 आदि की बुआई करें । उपलब्ध सोयाबीन बीज का अंकुरण परीक्षण अवश्य करें और बोनी के लिये आवश्यक आदान जैसे उर्वरक, खरपतवारनाशक, फफूंदनाशक, जैविक कल्चर आदि का क्रय कर उपलब्धता सुनिश्चित करें। पीला मोजेक बीमारी की रोकथाम के लिये अनुशंसित कीटनाशक थायोमिथाक्सम 30 एफ.एस. 10 मि.ली.प्रति किलोग्राम या इमिडाक्लोप्रिड 48 एफ.एस. 1.2 मि.ली. प्रति किलोग्राम से बीज का उपचार करें । किसानों को सलाह दी गई है कि गन्ने की फसल घुटने की ऊंचाई तक आ-जाने पर निराई-गुड़ाई और सिंचाई के बाद संस्तुत मात्रा में खाद्य दें और शरदकालीन गन्ने में आधी गुड़ाई करें। गन्ने की फसल में वर्षा प्रारंभ होने के पूर्व सिंचाई और खड़ी फसल में नत्रजन की अंतिम मात्रा का प्रयोग करें और आखिरी मिट्टी चढ़ायें ।
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